यूरोपीय / महाद्वीपीय या कान्टिनेंटल कानून प्रणाली क्या होती है ? इसकी विशेषताओं को जानिये.

Ashok Nayak
0

यूरोपीय / महाद्वीपीय या कान्टिनेंटल कानून प्रणाली : पश्चिम यूरोप के महाद्वीप के देशों द्वारा अनुसरण की जाने वाली कानूनी प्रणाली ( जिसे सामान्य रूप से इंग्लैंड के द्वीप के रूप में "महाद्वीप" कहा गया है ) को यूरोपीय ( महाद्वीपीय ) कानून प्रणाली कहा जाता है । 

सामान्य कानून की उत्पत्ति को पांचवी शताब्दी ए.डी. के प्राचीन रोमन साम्राज्य से जोड़ा जा सकता है । 

आपने रोम के राजा जस्टिनन ( ए.डी.483-565 ) के संबंध में सुना होगा जिसके समय में अनेक नियमों और विनियमों को समेकित किया गया था और उन्हें सहिता कहा गया था। 

उस समय से आगे , कुछ समय के लिए इंग्लैंड सहित संपूर्ण यूरोप में यह कानून प्रणाली फैल गई थी । 

शेष विश्व में , यह कानून प्रणाली 7 वीं तथा 8 वीं शताब्दियों के दौरान उपनिवेशवाद के युग में लागू की गई थी । 

अब आप इस कानून प्रणाली को दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के भागों के कुछ देशों में देख सकते हैं। 

जैसा कि आपको पता है, भारत में फ्रांस तथा पुर्तगाल कुछ समय के लिए अपना आधिपत्य स्थापित करने आए थे और उस अवधि के दौरान वे उन स्थानों पर अपने कानून व्यवस्था को लागू करने में सफल रहे जैसे पांडिचेरी , गोवा , दमन और दियू । 

European / Continental or Continental law system


यूरोपीय ( महाद्वीपीय ) कानून प्रणाली की मुख्य विशेषताएं क्या हैं ? 

आप निम्नलिखत विशेषताओं के आधार पर यूरोपीय ( महाद्वीपीय या कॉन्टेिंटल ) कानून प्रणाली की पहचान कर सकते हैं 
( क ) संसद या सक्षम प्राधिकरणों द्वारा पारित अधिनियमों , संविधियों का महत्व 
( ख ) न्यायपालिका की संरचना 
( ग ) कानून के निर्माण में न्यायाधीशों की शक्ति और 
( घ ) न्यायालय की प्रक्रियाओं में आधिकारिक दृष्टिकोण 
European / Continental or Continental law system

( क ) सक्षम विधायिका द्वारा पारित अधिनियम , सांविधि का महत्व : 

संसद या सक्षम प्राधिकरणों द्वारा पारित अधिनियमों को इस कानूनी प्रणाली में उच्चतम महत्व प्राप्त है । संसद या सक्षम विधायिका का प्राधिकार फैले हुए नियमों को सम्मिलित करना और तत्पश्चात आधुनिक परिस्थितियों के अनुसार उनको तैयार करना और संसद में उन्हें पारित कराना है । 

उदाहरण के लिए अपराधों के क्षेत्र में सम्मिलित तथा निर्मित नियमों को " दंड संहिता " ( penal code ) कहते हैं । संसद द्वारा पारित इन नियमों को तत्पश्चात विवादों के निपटान में न्यायाधीशों द्वारा प्रयोग किया जाता है । 

न्यायाधीश संसद द्वारा बनाए गए नियमों को सर्वोच्च मानते हुए उनका आदर करते हैं और सामान्य कानून परिवार में होने के कारण अपने स्वयं के प्राधिकार का प्रयोग करके इनमें परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करते हैं । 

वे अधिनियम में प्रयोग की गई अस्पष्ट भाषा को स्वयं का अर्थ प्रथान कर सकते हैं किन्तु वे स्पष्ट करते हैं कि विवादित पक्षों के अतिरिक्त ये बाध्यकारी नहीं होगा । 

संसद द्वारा परित नियमों का व्याख्यानन न्यायाधीशों द्वारा ही नहीं किया जाता है बल्कि विधि के विद्वानों और शिक्षाविदों द्वारा भी किया जाता है । 

संसद द्वारा पारित सार नियमों को न्यायाधीशों तथा एड्वोकेटों द्वारा भी अत्यधिक महत्व प्रदान किया जाता है । 


( ख ) न्यायपालिका की संरचना 

यूरोपीय ( महाद्वीपीय ) या कॉन्टिनेंटल कानून प्रणाली में न्यायपालिका विविध क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा बनती है क्योंकि इस कानूनी प्रणाली में न्यायाधीश किसी भी पृष्ठभूमि से हो सकता है । किसी विशिष्ट क्षेत्र का विशेष ज्ञान रखने वाला व्यक्ति न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हो सकता है । 

इस प्रकार , एक इंजीनियर , या डॉक्टर या वैज्ञानिक न्यायाधीश बन सकता है । अपेक्षित वर्षों के लिए एक पृथक विषय के रूप में विधि का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है और तत्पश्चात न्यायालय में कार्य कर सकते हैं । 

इसप्रकार उच्चतर न्यायालयों या ट्रायल अदालतों के न्यायाधीशों की नियुक्त विविध पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के रूप में की जाती है और इसके लिए विधि शिक्षा में डिग्री प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है । 

यूरोपीय ( महाद्वीपीय ) या कॉन्टिलेंटल कानून प्रणाली का अनुसरणकरने वाले देशों में कानून की शिक्षा भी प्रदान की जाती है किन्तु न्यायाधीश बनने के लिए यह एकमात्र आवश्यक अपेक्षा नहीं है । 

भारत में भी आपने देखा होगा कि न्यायालय द्वारा तकनीकी क्षेत्र के व्यक्तियों को भी सदस्य के रूप में नियुक्त किया जाता है ताकि उन मामलों में निष्कर्ष तक पहुंचा जा सके जहां कोई तकनीकी समस्या उत्पन्न हो जाती है । 


( ग ) कानून बनाने में न्यायाधीशों की शक्ति 

यूरोपीय ( महाद्वीपीय ) या कॉन्टिनेंटल कानून प्रणाली में न्यायाधीश कानून नहीं बनाते हैं और उनके निर्णय न्यायालय के समक्ष उपस्थित उस विवाद के अतिरिक्त प्राधिकार प्राप्त नहीं होता है । 

वे विधायिका द्वारा निर्मित कानून का ही प्रयोग करते हैं और वे स्वयं कानून का निर्माण नहीं करते हैं । दूसरे शब्दों में उच्चतर न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय विधिक पूर्व निर्णय नहीं माने जाते हैं जैसा कि सामान्य कानून प्रणाली में होता है । 

उनके निर्णयों को अन्य मामलों में न्यायाधीशों द्वारा सम्मान प्रदान किया जाता है किन्तु वे उसका अनुपालन करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं । 

उदाहरण के लिए , फ्रांस में उच्चतम न्यायालय यथा " कोर्ट दे कसेसेशन ( Court de cassation ) " द्वारा दिया गया निर्णय फ्रांस के अन्य सभी न्यायालयों के लिए बाध्यकारी नहीं है । 

तथापि , न्यायिक निकायों में उस न्यायालय के निर्णय को उच्च आदर प्रदान किया जाता है । उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश विधायिका द्वारा पारित कानूनों का खंडन नहीं कर सकते हैं , वे केवल विधायिका द्वारा पारित नियमों को लागू कर सकते हैं । 

इस प्रणाली का एक लाभ यह है कि वकीलों द्वारा न्यायालयों के बहुत सारे निर्णयों का अध्ययन नहीं किया जाता है , जैसे कि सामान्य कानून प्रणाली में किया जाता है और एड्वोकेट को न केवल संसद तथा विधायिका द्वारा पारित कानूनों का ज्ञान होना चाहिए बल्कि उच्चतर न्यायपालिका द्वारा दिए गए निर्णयों का भी ज्ञान होना चाहिए । 


( घ ) न्यायालय प्रक्रिया की अन्वेषणशील विचारधारा 

सत्य का पता लगाने में न्यायालयों की निष्क्रीय भूमिका और मामले के तथ्यों का पता लगाने में एड्वोकेटों के क्षमता पर आश्रित रहने के विपरीत , महाद्वीपीय कानून प्रणाली में न्यायाधीश सत्य का पता लगाने में सक्रीय भूमिका अदा करते हैं । 

न्यायालय की प्रक्रिया में प्रयोग होने वाली विचारधारा विरोधात्मक नहीं होती है बल्कि अन्वेषणाशील ( अन्वेषण शब्द का अर्थ है जांच करना ) होती है । 

यहां न्यायाधीश वादी ओर प्रतिवादी के बीच मात्र रेफरी की भूमिका अदा नहीं करते हैं बल्कि वे सभी विवादित पक्षों के साथ समन्वय करके सक्रीय रूप से मामले की जांच करते हैं और साक्ष्यों को एकत्र करके सत्य का पता लगाने का प्रयास करते हैं । 

इस प्रकार साक्ष्यों को एकत्र करने का उत्तरदायित्य केवल एड्वोकेट पर ही नहीं होता बल्कि न्यायाधीश पर भी होता है । न्यायाधीश स्वयं अपराध स्थल पर जाकर साक्ष्य की खोज कर सकता है यदि उसे लगे की विवादित पक्षों के एड्वोकेटों ने सत्य का पता लगाने में कुछ साक्ष्यों को छोड़ दिया है । 

यहा न्यायाधीश निष्क्रीय अवलोकन नहीं होते हैं बल्कि सत्य का पता लगाने में अपनी सक्रीय भूमिका अदा करते हैं । भारत में आप इस परिदृश्य का प्रयोग सरकार द्वारा स्थापित तथ्यों का पता लगाने वाले आयोगों की कार्यप्रणाली में देख सकते हैं । 

आपने वर्ष 2002 मे गोधरा दंगों के संबंध में वास्तविक तथ्यों का पता लगाने के लिए गुजरात सरकार द्वारा गठित श्श्नानावटी जांच आयोग " का नाम सुना होगा । 


क्या आप जानते है ?

महाद्वीपीय कानून प्रणाली की उत्पत्ति यूरोप में हुई और इसका निर्माण बारहवीं शताब्दी के यूरोपीय विश्वविद्यालयों ( विशेष रूप से जर्मनी में ) के विद्वानों के प्रयासों और रोम साम्राज्य के राजा जस्टीनियम के समेकनों के आधार पर किया गया था । इस लिए इस कानूनी प्रणाली को "श्श्रोमेनो - जमैनिक कानूनी प्रणाली" भी कहते हैं। 

इस कानूनी प्रणाली में , कानून की उत्पत्ति प्रमुख रूप से ऐतिहासिक कारणों से व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों के बीच के निजी संबंधों को विनियमित करने के माधयम के रूप में अनिवाय "निजी कानून" के रूप में की गई थी । 


तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Sharing Button पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो Comment Box में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल Personal Contact Form को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “Hindi Variousinfo” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में Bookmark (Ctrl + D) करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी Subscribe करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे whatsapp , Facebook या Twitter जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद !

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

If you liked the information of this article, then please share your experience by commenting. This is very helpful for us and other readers. Thank you

If you liked the information of this article, then please share your experience by commenting. This is very helpful for us and other readers. Thank you

Post a Comment (0)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !

Adblocker detected! Please consider reading this notice.

We've detected that you are using AdBlock Plus or some other adblocking software which is preventing the page from fully loading.

We don't have any banner, Flash, animation, obnoxious sound, or popup ad. We do not implement these annoying types of ads!

We need money to operate the site, and almost all of it comes from our online advertising.

×